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राजस्थान में 3,737 अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति का संकट: छात्र बिना पढ़े देंगे वार्षिक परीक्षा, सरकार चुप

Summary

राजस्थान सरकार के 3737 अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति अब तक अधूरी है। वार्षिक परीक्षा शुरू होने वाली है लेकिन छात्रों को पढ़ाने वाला कोई नहीं है। पढ़ें पूरी खबर।

राजस्थान में 3,737 अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में शिक्षक नहीं, छात्र बिना पढ़ाई के देंगे वार्षिक परीक्षा

जयपुर। राजस्थान के शिक्षा क्षेत्र में इस समय एक गंभीर संकट खड़ा हो गया है। राज्य सरकार द्वारा संचालित 3,737 स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल और महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में हजारों शिक्षक पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। हालात ये हैं कि 24 अप्रैल 2025 से शुरू हो रही वार्षिक परीक्षाओं में इन स्कूलों के छात्र बिना पढ़ाई के ही भाग लेने को मजबूर हैं।

शिक्षा व्यवस्था पर संकट: बिना शिक्षकों के कैसे होगा भविष्य निर्माण?

राज्य में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई ये स्कूलें अब खुद ही संकट में घिरी नजर आ रही हैं। इन स्कूलों में पढ़ने वाले हजारों छात्र-छात्राएं योग्य शिक्षकों के अभाव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हैं। हालांकि सरकार ने समय-समय पर शिक्षकों की भर्ती के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन न्यायिक प्रक्रियाओं, प्रशासनिक देरी, और राजनीतिक फैसलों के चलते अभी तक शिक्षकों की पदस्थापना नहीं हो पाई है।


चयन हुआ लेकिन पदस्थापन अधूरा: प्रक्रिया में उलझी सरकार

राज्य सरकार ने 25 अगस्त 2024 को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित की थी। परीक्षा का परिणाम भी लंबे इंतजार के बाद 23 दिसंबर 2024 को जारी किया गया। लेकिन 10 प्रतिशत बोनस अंकों को लेकर मामला अदालत में चला गया, जिससे प्रक्रिया में बाधा आई।

उसके बाद 13 से 16 जनवरी 2025 के बीच विभाग ने चयनित शिक्षकों से नया जिला विकल्प फॉर्म भरवाया, क्योंकि राज्य में जिलों की संख्या 50 से घटाकर 41 कर दी गई थी। अब जबकि फॉर्म भरवाए जा चुके हैं, फिर भी पदस्थापन की कोई ठोस तिथि तय नहीं हो सकी है।


3,737 स्कूलों में 17,500 पद खाली, पढ़ाई ठप

राज्य में 3,737 अंग्रेजी माध्यम स्कूल ऐसे हैं जिनमें लगभग 17,500 शिक्षकों की जरूरत है। लेकिन वर्तमान में इतने शिक्षक मौजूद नहीं हैं। कई स्कूलों में एक भी नियमित शिक्षक नियुक्त नहीं है, जबकि कई जगह केवल अतिथि शिक्षक या पुराने विषय के शिक्षक कार्यरत हैं।

इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ा है और विद्यार्थियों के लिए पढ़ाई लगभग नाम मात्र की रह गई है। ऐसे में जब 24 अप्रैल से राज्य स्तरीय वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही हैं, तो सवाल उठता है कि इन छात्रों ने क्या पढ़ा और कैसे परीक्षा देंगे?


प्रवेशोत्सव का भी नहीं हो रहा प्रचार

राज्य सरकार ने प्रवेशोत्सव कार्यक्रम की शुरुआत तो कर दी है, लेकिन इन अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया गया है। इससे नए नामांकन की प्रक्रिया भी प्रभावित हो रही है। शिक्षकों के अभाव में अभिभावक इन स्कूलों में बच्चों को दाखिल कराने में हिचकिचा रहे हैं।

रेस्टा शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष मोहर सिंह सलावद ने भी इस मुद्दे को गंभीर बताते हुए कहा कि –

“महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में शिक्षक नहीं होने से बच्चों का भविष्य अधर में है। अगर जल्द पदस्थापन नहीं हुआ तो नामांकन गिरेंगे और स्कूलों की साख भी खत्म हो जाएगी।”


बच्चों का भविष्य अधर में, सरकार मौन

सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इन स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। शिक्षक नहीं होने से इन छात्रों को न तो विषय की समझ मिल पा रही है और न ही परीक्षा की तैयारी का समय। नतीजा ये होगा कि छात्र परीक्षा तो देंगे लेकिन ज्ञान और आत्मविश्वास के बिना।

ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि जब सरकार ने इन स्कूलों को खोलने का बड़ा सपना दिखाया था, तो उसे पूरा करने की जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाई जा रही?


शिक्षक भर्ती में देरी: प्रशासनिक लापरवाही या राजनीतिक मजबूरी?

  • परीक्षा संपन्न हुए 3 महीने से ज्यादा हो चुके हैं

  • 23 दिसंबर 2024 को परिणाम जारी

  • 13-16 जनवरी 2025 को जिला विकल्प लिए गए

  • अब तक कोई पदस्थापन नहीं

इस पूरी प्रक्रिया में स्पष्ट रूप से प्रशासनिक ढिलाई और योजनाओं की अस्थिरता नजर आती है। एक ओर राज्य सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करती है, वहीं दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में शिक्षा के मूलभूत ढांचे को नजरअंदाज किया जा रहा है।


मांगें और सुझाव: कैसे निकले समाधान?

  1. तत्काल पदस्थापन आदेश जारी करें – चयनित शिक्षकों को जल्दी से जिला आवंटन दे सरकार।

  2. अस्थायी व्यवस्था लागू करें – जब तक नियमित शिक्षक नहीं आते, तब तक अतिथि शिक्षक तैनात किए जाएं।

  3. पढ़ाई की भरपाई के लिए विशेष कक्षाएं चलें – बच्चों को परीक्षा पूर्व तैयारी के लिए मदद मिलनी चाहिए।

  4. स्कूलों की मॉनिटरिंग हो – शिक्षा विभाग द्वारा नियमित निरीक्षण और फीडबैक प्रणाली लागू हो।

  5. नए नामांकन के लिए प्रचार अभियान चलाया जाए – स्कूलों की साख बनाए रखने के लिए जागरूकता जरूरी है।


निष्कर्ष: शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों में?

राजस्थान सरकार द्वारा अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा को लेकर जो सपना दिखाया गया था, वह आज धरातल पर अधूरा नजर आता है। हजारों शिक्षक चयन के बावजूद पदस्थ नहीं हो सके, और लाखों छात्र बिना पढ़ाई के परीक्षा देने को मजबूर हैं। अगर यही हाल रहा, तो ना केवल छात्रों का भविष्य प्रभावित होगा, बल्कि सरकार की योजनाओं की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठेंगे।

अब समय है कि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाए और शिक्षा को सिर्फ घोषणाओं का हिस्सा नहीं, बल्कि वास्तविकता बनाए।

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